सलीम अहमद

उन्नाव जिले के हसनगंज क्षेत्र में मंगलवार सुबह एक भयावह सड़क हादसे ने पूरे गांव को गहरे शोक में डुबो दिया। तीन ज़िंदगियां एक तेज़ रफ्तार डंपर की चपेट में आकर हमेशा के लिए थम गईं—देवर, भाभी और ढाई साल की मासूम बच्ची की मौत ने पूरे परिवार को ही उजाड़ दिया। अस्पताल से दवा लेकर लौट रहे थे—घर पहुंचने से पहले ही काल ने घेर लिया।
ओहरापुर कौड़िया गांव की रहने वाली 30 वर्षीय रंगीता, अपनी ढाई साल की बेटी आकृति और 24 वर्षीय देवर गौरव के साथ फरहदपुर सेवा अस्पताल से दवा लेकर लौट रही थीं। बच्ची की तबीयत खराब थी। लेकिन फरहदपुर गांव के पास एक तेज रफ्तार अनियंत्रित डंपर ने उनकी बाइक को सामने से रौंद डाला।
टक्कर इतनी भीषण थी कि तीनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। चंद सेकंड में पूरा दृश्य खून और चीख-पुकार से भर गया घटनास्थल पर मातम, गांव में कोहराम। राहगीरों ने जब शवों को सड़क पर बिखरा देखा, तो तुरंत पुलिस को सूचना दी। हसनगंज और अजगैन थानों की पुलिस मौके पर पहुंची और शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजा। लेकिन इस बीच गांव में मौत की खबर पहुंचते ही कोहराम मच गया। रंगीता के पति अंकित, सास राजेश्वरी, ससुर बंशीलाल रावत और बड़ी बेटी अनन्या का रो-रोकर बुरा हाल है। एक ही दिन में मां, बहन और बेटी को खो देने वाले गौरव के परिजन सदमे में हैं। तीन जनों की एक साथ चिता—सवालों में घिरा सिस्टम गांव के लोगों ने इस हादसे को सिर्फ ‘दुर्घटना’ नहीं माना। उनका कहना है कि इस मार्ग पर भारी वाहन अक्सर बेकाबू रफ्तार से दौड़ते हैं लेकिन न कोई स्पीड ब्रेकर है, न कोई निगरानी। प्रशासन की लापरवाही तीन जिंदगियों पर भारी पड़ी।
फरार है चालक, डंपर पुलिस हिरासत में हादसे के बाद डंपर चालक वाहन छोड़कर मौके से फरार हो गया। पुलिस ने डंपर को कब्जे में लेकर थाने भेज दिया है। हसनगंज थाना प्रभारी संदीप शुक्ल ने बताया कि फरार चालक की गिरफ्तारी के लिए टीमें गठित की गई हैं, और परिजनों की तहरीर मिलते ही विधिक कार्रवाई की जाएगी।
नन्हीं आकृति की मौत और बड़ी बहन अनन्या का अकेलापन
आकृति सिर्फ ढाई साल की थी।अभी ठीक से बोलना भी नहीं सीखा था—पर उसका बचपन बीच सड़क पर रौंद दिया गया। उसकी बड़ी बहन अनन्या अब एक ऐसे सन्नाटे में जी रही है, जहां मां की गोद, बहन की मुस्कान और परिवार का सहारा सब एक साथ छिन गया।*
अब सवाल उठते हैं: क्या ऐसे हादसों को “दुर्घटना” कहकर टाल देना ही काफी है?
क्या प्रशासन तब ही जागेगा जब और घरों के चिराग बुझेंगे?
सड़क पर रफ्तार का आतंक कब रुकेगा। मासूम आकृति की मौत के जिम्मेदार कौन हैं—सिर्फ ड्राइवर या हम सब यह हादसा सिर्फ एक हादसा नहीं, समाज के सिस्टम पर गूंजता एक करुण क्रंदन है। जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक हर गांव में किसी की बहन, बेटी और भाई इसी तरह मौत के घाट उतरते रहेंगे।