सलीम अहमद

उन्नाव,हसनगंज। जंग ए आजादी के पुरोधा मौलाना हसरत मोहानी का जन्म जनपद उन्नाव के कस्बा मोहान में हुआ था उनकी मृत्यु 13 में 1951 में हुई उनका पूरा नाम सैयद फ़ज़ल उल हसन हसरत मोहानी, आज 13 को उनके यौमे विसाल पर जनपद उन्नाव में जगह जगह उनकी तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर अकीदत पेश की,मौलाना हसरत मोहानी हिंदुस्तान की आजादी में अहम किरदार निभाने क्रांतिकारी थे जिन्होंने इंकलाब जिंदाबाद का नारा दिया वे एक महान शायर एक सच्चे पत्रकार थे अंग्रेजों के खिलाफ गोरिला जंग की वकालत की, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को स्वदेशी आंदोलन की राह सुझाई सबसे पहले हिंदुस्तान के मुकम्मल आजादी की मांग की देश के विभाजन का विरोध किया संविधान निर्माण असेंबली पार्लियामेंट के सदस्य रहे हिंदुस्तान की जंग ए आजादी में इंकलाब जिंदाबाद का नारा देने वाले मौलाना हसरत मोहानी ही थे उन्होंने अलीगढ़ से ही साहित्यिक व राजनीतिक पत्रिका उर्दू – ए – मुअल्ला जारी किया उर्दू – ए – मुअल्ला में आजादी पसंदो के आलेख बराबर छपते थे और दूसरे देशों में भी अंग्रेजों की नीतियों का पर्दाफाश किया जाता था सन 1908 में ऐसा ही एक लेख के लिए उन पर मुकदमा कायम किया गया और 2 साल की सजा हुई जिसमें उनसे रोजाना एक मन गेहूं पिसवाया जाता था उसी कैद में उन्होंने अपना मशहूर शे’र कहा था,है मश्क़ ए सुखन जारी, चक्की की मशक्कत भी एक तुर्फा तमाशा है शायर की तबीयत भी* आज देश की आजादी में अहम योगदान देने वाले महान क्रांतिकारी मौलाना हसरत मोहानी को सिर्फ किताबों के पन्नों तक ही सीमित कर दिया गया कस्बा मोहान में उनके नाम पर कोई पार्क या क्रीडा स्थल तक नहीं बनाया गया कस्बा मोहान की धरती पर जन्मे मौलाना हसरत मोहानी को भुला दिया गया मौलाना हसरत मोहानी क़ौमी वेलफेयर फाउंडेशन की तरफ से यूनुस मोहानी ने मौलवी अनवार बाग लखनऊ उनकी कब्र पर पहुंचकर अकीदत पेश की देशवासियों को यह संदेश दिया कि हिंदुस्तान की आजादी में मौलाना हसरत मोहानी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।